बढे कदम रुकते नहीं रुके कदम बड़ते नहीं पानी हो मंजिल तो पीछे मुड देखते नहीं माना है मुस्किले रास्तो में सुनसान सड़क है और अँधेरी राते है एक दिया तो जलाओ रस्ते खुद ब खुद जगमाएँगे आगे बदने का होसला रखो मंजिल सामने आएंगी मत सोचो इतिहास ने हमे क्या दिया हम इतिहास बनाएँगे राजभर को इसका हक़ दिलाएंगे !
उठो राजभर कुछ काम करो जग में अपना नाम करो अकेले नहीं हम साथ चलेंगे डाले हाथो में हाथ चलेंगे हम भी देखे कौन रोक सकता है हमे इतिहास अपना खुद बनायेंगे हम इस दुनिया को बताएँगे हम जोश हमारे रग रग में है बड़ते जाएँगे कदम मिलाओ चलो दोस्तों हाथ बढाओ राजभर को इसका सम्मान दिलाओ ...
मि. डी. एल. ड्रेक ब्राकमेन ने आजमगढ़ के भरो के सम्बन्ध मे वर्णन करते है कि आर्यों मे से भर भी एक जाति है ! जो कशी,गोरखपुर क्मिस्नरियो मे पाए जाते है ! भर इस जिले मे सन् १९०१ ई मे ६९९६२ थे ! इन के रहने का मुख्य: स्थान देव गाँव, सगरी,मुहम्मदाबाद,घोसी आदि है ! इस जिले मे इस समय अधिक जातिया निवास कर रही है परन्तु एतिहासिक प्रमाणों द्वारा सिद्ध होता कि इस स्थान के प्राचीन निवासी भर तथा राजभर है !
दिह्दुअर परगना महल मे असिल देव नाम के एक राजभर राज करते थे ! जिसके राज्य के समय के तालाब और किले के खंडहर पाए जाते है ! जिसे अरारा के बचगुटी राजपूत अपने वंश का मानते है ! कौड़िया परगना अरौन जहनियांनपुर मे अयोद्धया राय राजभर राज करते थे ! ये असिल देव के वंसज काहे जाते है ! इस समय निजामाबाद एक प्रशिद्ध स्थान है ! यहाँ के राजा एक समय मे परीक्षक भर थे ! उन्होंने अनवन्क के किले को अपने अधिकार मे कर लिया था ! राजा परीक्षक ने धीरे धीरे भरो कि शक्ति प्रबल कि और पुनः सिकंदरपुर आजमगढ़ परगना पर अधिकार किया ! मि. शोरिंग साहब का उल्लेख है कि आजमगढ़ के भरो का राज्य भी रामचंद्र के राज्य के समय अयोध्या से मिला हुआ था ! इस जाति के लोग बहुत से किले,कोट,खाई,तालाब,कुए,पड़ाव आदि प्राचीन स्मृति छोड़ गए है !
आजमगढ़ जिले मे घोसी के निकट हरवंशपुर उचगवाना के किले के चारो और कुंवर और मघाई नदिया खाई नुमा घेरा बनाया गया है ! ऐसा ही कार्य निजामाबाद परगने मे अमीना नगर (मेहा नगर) के निकट हरिबान्ध है! प्राचीन खंडहरों मे चिरइया कोट भी इन्ही लोगो का है ! Top AMAR RAJBHAR 9278447743
सभा पर्व, महाभारत / बुक द्वितीय अध्याय 48 के अंतर्गत भर कबीले के बारे में 9 श्लोक में उल्लेख है:
भर हरियाणा के हिसार जिला में पाए गए थे ! वे पंजाब में भी हैं पर असल में वे राजस्थान के हैं! राजस्थानी भाषा में भर का मतलब होता है एक लंबी और उच्च बालू का टीला! भारहुत अपना नाम अपने कबीले के शासक भर के नाम से रखे थे ! उन्हें भारशिवा भी कहा जाता है! इस गोत्र के पैतृक लोग नागवंश के वंसज माने जाते है ! उन्होंने ही सबसे पहले शिवलिंग की पूजा की नई प्रणाली शुरआत की थी !
भारहुत मध्य प्रदेश मे है और अपने प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप के लिए जाना जाता! भारहुत स्तूप 3 सदी BCE में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा स्थापित किया गया था ! ये जगह अपने कबीले के शासक भर या राजभर के नाम से भारहुत के नाम से जाना गया !
राजभर जाति का संक्षिप्त इतिहास
१९ वी शादी के अंत तक स्वयं राजभर जाति के लोगो को अपने विषय मे विशेष जानकारी नहीं थी ! इस जाति के लोग अपने को भारशिव , भारगव, भारद्वाज, भर, भार, राजभर, भरपतवा, आदि संबोधनों से जाने जाते रहे ! जब भी किसी ने पूछा की भारशिव,भर य राजभर कौन सी जाति है तो इस कौम के किसी ने सवालकर्ता का शाही उत्तर नहीं दिया ! इनका उत्तर बस यही होता था की हमारे पुरखे भार, भारशिव, राजभर लिखते आए है सो हम भी लिख रहे है !कभी कभी किसी ने यह कह कर संतुष्ट करने का प्रयाश किया कि हम राजा थे, हम क्षत्रिय है, हम राजवंशीय ठाकुर है ! किन्तु प्रमाणों के आभाव मे ये हीन भावना से ग्रसित रहे ! जवाब देने कि परेशानी से बचने के लिए इनमे से कई लोगो ने अपनी सुविधानुसार उपनामों का प्रयोग करने लगे !
यधपि इस जाति का उल्लेख ऋग्वेद के दशवें मंडल मे,पुराणों,महाभारत एवं अन्य प्राचीन ग्रंथो मे किया गया है ! किन्तु हमारे समाज के लोग उन सूत्रों को सामने लाने मे असफल रहे ! अंग्रेज इतिहासकार मिस्टर शोरिंग, डॉ. बी. ए. स्मिथ, डी. सी. बैली, मिस्टर रिकेट्स, मि. गोस्त्ब आपर्ट, मिस्टर पी. करनेगी, मि. थानसन, एच. आर. नेविल, डब्लू क्रोक, सर हेनरी इलिएट, एच. एम. एलियट, मि. डव्लू. सी. बेनट, मि. सर ए. कनिघम, मि. उड़वार्ण, मि. डी. एल. ड्रेक ब्रक्मैन, मि. सी. एश. एलियट, डॉ. ओलधम, आदि ने अपने ग्रंथो एवं वभिन्न गजेटियर्स मे इस वीर जाति के शौर्य का दिल खोलकर चर्चा किया है !
इन्होने लिखा है कि यह वीर जाति भर, भार, राजभर, भरत तथा भरपतवा नाम से जनि जाती थी ! इन्होने भर और भरताज को एक मानते हुए कहा है कि इनकी मुख्य जाती राजभर,भारद्वाज, और कनौजिया है ! भूमिधारी भार को राजभर कहा गया ! इन्होने चंदेल, राठौर,राष्ट्कुट,परिहार, आदि को इनका वंशज मानते हुए इस जाति को उच्चवर्ण का राजपूत कहा है !
अंग्रेज इतिहासकारों का कहना है कि भार अथवा राजभर जाति भारत के अधिकांश भू-भाग पर शासन किया है ! भारतीय इतिहासकारों के सामने भी एक विकट समस्या थी ! कुशनों के पतन तथा गुप्तों के उदय के बिच का इतिहास ज्ञात न होने के कारण भारतीय इतिहास के इस युग को अंधकार युग कि संज्ञा दी ! वो समझ नहीं पा रहे थे कि उस काल मे कौन सा राजवंश राज कर रहा था !
सच है पृथ्वी के गर्भ मे बहुत कुछ समाया हुआ था ! समय बदलता रहा ! समय ने भारशिवो के समबन्धित एतिहासिक सामग्री उगलना प्रारम्भ किया तब इतिहासकारों को भी आश्चर्य हुआ ! सन् १८३६ से लेकर अभी तक पुरातत्व विडो ने भारशिवो के सम्बन्ध मे जो भी सामग्री प्राप्त किया उससे स्पष्ट हो गया है कि जिसे इतिहासकार अंधकार युग कहते थे वह युग भारशिव (राजभर) राजवंश के शासन काल का युग था ! विश्लेशण से स्पष्ट हो गया कि भारशिवो (राजभर) ने अपने देश कि रक्षा के लिए जो कुछ किया उसका ऋण चूका पाना संभव नहीं है !
RAJBHAR JI
ReplyDeleteAMAR RAJBHAR AZAMGARH SURHAN 9278447743
ReplyDeleteबढे कदम रुकते नहीं
ReplyDeleteरुके कदम बड़ते नहीं
पानी हो मंजिल तो
पीछे मुड देखते नहीं
माना है मुस्किले रास्तो में
सुनसान सड़क है और अँधेरी राते है
एक दिया तो जलाओ रस्ते खुद ब खुद जगमाएँगे
आगे बदने का होसला रखो मंजिल सामने आएंगी
मत सोचो इतिहास ने हमे क्या दिया
हम इतिहास बनाएँगे
राजभर को इसका हक़ दिलाएंगे !
उठो राजभर कुछ काम करो
ReplyDeleteजग में अपना नाम करो
अकेले नहीं हम साथ चलेंगे
डाले हाथो में हाथ चलेंगे
हम भी देखे कौन रोक सकता है हमे
इतिहास अपना खुद बनायेंगे हम
इस दुनिया को बताएँगे हम
जोश हमारे रग रग में है
बड़ते जाएँगे कदम मिलाओ
चलो दोस्तों हाथ बढाओ
राजभर को इसका सम्मान दिलाओ ...
आजमगढ़
ReplyDeleteमि. डी. एल. ड्रेक ब्राकमेन ने आजमगढ़ के भरो के सम्बन्ध मे वर्णन करते है कि आर्यों मे से भर भी एक जाति है ! जो कशी,गोरखपुर क्मिस्नरियो मे पाए जाते है ! भर इस जिले मे सन् १९०१ ई मे ६९९६२ थे ! इन के रहने का मुख्य: स्थान देव गाँव, सगरी,मुहम्मदाबाद,घोसी आदि है ! इस जिले मे इस समय अधिक जातिया निवास कर रही है परन्तु एतिहासिक प्रमाणों द्वारा सिद्ध होता कि इस स्थान के प्राचीन निवासी भर तथा राजभर है !
दिह्दुअर परगना महल मे असिल देव नाम के एक राजभर राज करते थे ! जिसके राज्य के समय के तालाब और किले के खंडहर पाए जाते है ! जिसे अरारा के बचगुटी राजपूत अपने वंश का मानते है ! कौड़िया परगना अरौन जहनियांनपुर मे अयोद्धया राय राजभर राज करते थे ! ये असिल देव के वंसज काहे जाते है ! इस समय निजामाबाद एक प्रशिद्ध स्थान है ! यहाँ के राजा एक समय मे परीक्षक भर थे ! उन्होंने अनवन्क के किले को अपने अधिकार मे कर लिया था ! राजा परीक्षक ने धीरे धीरे भरो कि शक्ति प्रबल कि और पुनः सिकंदरपुर आजमगढ़ परगना पर अधिकार किया ! मि. शोरिंग साहब का उल्लेख है कि आजमगढ़ के भरो का राज्य भी रामचंद्र के राज्य के समय अयोध्या से मिला हुआ था ! इस जाति के लोग बहुत से किले,कोट,खाई,तालाब,कुए,पड़ाव आदि प्राचीन स्मृति छोड़ गए है !
आजमगढ़ जिले मे घोसी के निकट हरवंशपुर उचगवाना के किले के चारो और कुंवर और मघाई नदिया खाई नुमा घेरा बनाया गया है ! ऐसा ही कार्य निजामाबाद परगने मे अमीना नगर (मेहा नगर) के निकट हरिबान्ध है! प्राचीन खंडहरों मे चिरइया कोट भी इन्ही लोगो का है ! Top
AMAR RAJBHAR 9278447743
यक्ष रेलिएफ्स .भरहुत
ReplyDeleteभर का इतिहास
सभा पर्व, महाभारत / बुक द्वितीय अध्याय 48 के अंतर्गत भर कबीले के बारे में 9 श्लोक में उल्लेख है:
भर हरियाणा के हिसार जिला में पाए गए थे ! वे पंजाब में भी हैं पर असल में वे राजस्थान के हैं! राजस्थानी भाषा में भर का मतलब होता है एक लंबी और उच्च बालू का टीला! भारहुत अपना नाम अपने कबीले के शासक भर के नाम से रखे थे ! उन्हें भारशिवा भी कहा जाता है! इस गोत्र के पैतृक लोग नागवंश के वंसज माने जाते है ! उन्होंने ही सबसे पहले शिवलिंग की पूजा की नई प्रणाली शुरआत की थी !
भारहुत मध्य प्रदेश मे है और अपने प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप के लिए जाना जाता! भारहुत स्तूप 3 सदी BCE में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा स्थापित किया गया था ! ये जगह अपने कबीले के शासक भर या राजभर के नाम से भारहुत के नाम से जाना गया !
राजभर जाति का संक्षिप्त इतिहास
१९ वी शादी के अंत तक स्वयं राजभर जाति के लोगो को अपने विषय मे विशेष जानकारी नहीं थी ! इस जाति के लोग अपने को भारशिव , भारगव, भारद्वाज, भर, भार, राजभर, भरपतवा, आदि संबोधनों से जाने जाते रहे ! जब भी किसी ने पूछा की भारशिव,भर य राजभर कौन सी जाति है तो इस कौम के किसी ने सवालकर्ता का शाही उत्तर नहीं दिया ! इनका उत्तर बस यही होता था की हमारे पुरखे भार, भारशिव, राजभर लिखते आए है सो हम भी लिख रहे है !कभी कभी किसी ने यह कह कर संतुष्ट करने का प्रयाश किया कि हम राजा थे, हम क्षत्रिय है, हम राजवंशीय ठाकुर है ! किन्तु प्रमाणों के आभाव मे ये हीन भावना से ग्रसित रहे ! जवाब देने कि परेशानी से बचने के लिए इनमे से कई लोगो ने अपनी सुविधानुसार उपनामों का प्रयोग करने लगे !
यधपि इस जाति का उल्लेख ऋग्वेद के दशवें मंडल मे,पुराणों,महाभारत एवं अन्य प्राचीन ग्रंथो मे किया गया है ! किन्तु हमारे समाज के लोग उन सूत्रों को सामने लाने मे असफल रहे ! अंग्रेज इतिहासकार मिस्टर शोरिंग, डॉ. बी. ए. स्मिथ, डी. सी. बैली, मिस्टर रिकेट्स, मि. गोस्त्ब आपर्ट, मिस्टर पी. करनेगी, मि. थानसन, एच. आर. नेविल, डब्लू क्रोक, सर हेनरी इलिएट, एच. एम. एलियट, मि. डव्लू. सी. बेनट, मि. सर ए. कनिघम, मि. उड़वार्ण, मि. डी. एल. ड्रेक ब्रक्मैन, मि. सी. एश. एलियट, डॉ. ओलधम, आदि ने अपने ग्रंथो एवं वभिन्न गजेटियर्स मे इस वीर जाति के शौर्य का दिल खोलकर चर्चा किया है !
इन्होने लिखा है कि यह वीर जाति भर, भार, राजभर, भरत तथा भरपतवा नाम से जनि जाती थी ! इन्होने भर और भरताज को एक मानते हुए कहा है कि इनकी मुख्य जाती राजभर,भारद्वाज, और कनौजिया है ! भूमिधारी भार को राजभर कहा गया ! इन्होने चंदेल, राठौर,राष्ट्कुट,परिहार, आदि को इनका वंशज मानते हुए इस जाति को उच्चवर्ण का राजपूत कहा है !
अंग्रेज इतिहासकारों का कहना है कि भार अथवा राजभर जाति भारत के अधिकांश भू-भाग पर शासन किया है ! भारतीय इतिहासकारों के सामने भी एक विकट समस्या थी ! कुशनों के पतन तथा गुप्तों के उदय के बिच का इतिहास ज्ञात न होने के कारण भारतीय इतिहास के इस युग को अंधकार युग कि संज्ञा दी ! वो समझ नहीं पा रहे थे कि उस काल मे कौन सा राजवंश राज कर रहा था !
सच है पृथ्वी के गर्भ मे बहुत कुछ समाया हुआ था ! समय बदलता रहा ! समय ने भारशिवो के समबन्धित एतिहासिक सामग्री उगलना प्रारम्भ किया तब इतिहासकारों को भी आश्चर्य हुआ ! सन् १८३६ से लेकर अभी तक पुरातत्व विडो ने भारशिवो के सम्बन्ध मे जो भी सामग्री प्राप्त किया उससे स्पष्ट हो गया है कि जिसे इतिहासकार अंधकार युग कहते थे वह युग भारशिव (राजभर) राजवंश के शासन काल का युग था ! विश्लेशण से स्पष्ट हो गया कि भारशिवो (राजभर) ने अपने देश कि रक्षा के लिए जो कुछ किया उसका ऋण चूका पाना संभव नहीं है !
AMAR BAHADUR RAJBHAR SURHAN AZAMGARH 9278447743
UMESH RAJBHAR
ReplyDeleteBSP KARYKARTA ANAND NAGAR SURHAN AZAMGARH
9695587585
WRITE BY AMAR RAJBHAR JI
9278447743